हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 5.6.4

कांड 5 → सूक्त 6 → मंत्र 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 6
पर्यु॒ षु प्र ध॑न्वा॒ वाज॑सातये॒ परि॑ वृ॒त्राणि॑ स॒क्षणिः॑ । द्वि॒षस्तदध्य॑र्ण॒वेने॑यसे सनिस्र॒सो नामा॑सि त्रयोद॒शो मास॒ इन्द्र॑स्य गृ॒हः ॥ (४)
हे सूर्य! तुम अन्न उत्पादन के निमित्त मेघों के समीप जाते हो और उन्हें ताड़ित कर के सागर के पास पहुंचाते हो. इसी कारण तुम्हारा नाम सनिस्रत है. वर्ष का तेरहवां महीना जो इंद्र का घर है, तुम उस में भी वर्षा करने को तत्पर हो. (४)
O sun! You go near the clouds for food production and chastise them and bring them to the ocean. That's why your name is Sanasrat. The thirteenth month of the year, which is the house of Indra, you are ready to rain in it too. (4)