हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 7
आ नो॑ भर॒ मा परि॑ ष्ठा अराते॒ मा नो॑ रक्षी॒र्दक्षि॑णां नी॒यमा॑नाम् । नमो॑ वी॒र्त्साया॒ अस॑मृद्धये॒ नमो॑ अ॒स्त्वरा॑तये ॥ (१)
हे अराति! हम को धन संपन्न बना. तू हमारे चारों ओर स्थित मत हो और हमारे द्वारा लाई गई दक्षिणा को प्रभावित मत कर. यह हवि हम दान हीनता की अधिष्ठात्री देवी को वृद्धि न होने की इच्छा से दे रहे हैं. यह तुझे प्राप्त हो. (१)
O Arati! We make rich. Don't be around us and don't influence the dakshina we bring. We are giving this havi to the goddess, the presiding deity of charity, with the desire not to grow. You get it. (1)

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 7
यम॑राते पुरोध॒त्से पुरु॑षं परिरा॒पिण॑म् । नम॑स्ते॒ तस्मै॑ कृण्मो॒ मा व॒निं व्य॑थयी॒र्मम॑ ॥ (२)
हे अराति! हम उस पुरुष को दूर से प्रणाम करते हैं, जो तुम्हारे सम्मुख रहता है एवं केवल बोलने वाला है, काम नहीं करता. तुम हमारी इस इच्छा को ठुकराना मत. (२)
O Arati! We salute the man from a distance, who is in front of you and is only a speaker, does not work. Don't turn down this wish of ours. (2)

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 7
प्र णो॑ व॒निर्दे॒वकृ॑ता॒ दिवा॒ नक्तं॑ च कल्पताम् । अरा॑तिमनु॒प्रेमो॑ व॒यं नमो॑ अ॒स्त्वरा॑तये ॥ (३)
हम में देवों की भक्ति रातदिन बढ़ती रहे. इसीलिए हम अराति की शरण में जाते हैं. अराति को नमस्कार हो. (३)
The devotion of gods in us increased day by day. That is why we go to the shelter of Arati. Hello to Arati. (3)

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 7
सर॑स्वती॒मनु॑मतिं॒ भगं॒ यन्तो॑ हवामहे । वाचं जु॒ष्टां मधु॑मतीमवादिषं दे॒वानां॑ दे॒वहू॑तिषु ॥ (४)
मैं देवों का आह्वान करने वाले यज्ञों में उस वाणी का उच्चारण करता हूं, जो उन्हें प्रसन्न करने वाली है. हम सब सरस्वती, अनुमति और भगदेव की शरण प्राप्त करते हैं और उन्हें बुलाते हैं. (४)
I utter that speech in the yagyas invoking the gods, which is pleasing to them. We all get refuge in Saraswati, Permission and Bhagdev and call him. (4)

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 7
यं याचा॑म्य॒हं वा॒चा सर॑स्वत्या मनो॒युजा॑ । श्र॒द्धा तम॒द्य वि॑न्दतु द॒त्ता सोमे॑न ब॒भ्रुणा॑ ॥ (५)
मन से उत्पन्न सरस्वती की वाणी के द्वारा मैं जिस वस्तु को पाने की प्रार्थना करता हूं, वह शक्तिशाली सोमदेव की श्रद्धा द्वारा दी हुई प्राप्त हो. (५)
The thing I pray to get through the voice of Saraswati born of the mind, it should be received by the reverence of the powerful Somdev. (5)

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 7
मा व॒निं मा वाचं॑ नो॒ वीर्त्सी॑रु॒भावि॑न्द्रा॒ग्नी आ भ॑रतां नो॒ वसू॑नि । सर्वे॑ नो अ॒द्य दित्स॒न्तोऽरा॑तिं॒ प्रति॑ हर्यत ॥ (६)
हे अराति! तू हमारी वाणी और भक्ति को अवरुद्ध मत कर. इंद्र और अग्नि हमें धन प्रदान करें तथा वे इस समय हमारे शत्रुओं के अनुकूल न हों. (६)
O Arati! Do not block our speech and devotion. May Indra and Agni give us wealth and they should not be compatible with our enemies at this time. (6)

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 7
प॒रोऽपे॑ह्यसमृद्धे॒ वि ते॑ हे॒तिं न॑यामसि । वेद॑ त्वा॒हं नि॒मीव॑न्तीं नितु॒दन्ती॑मराते ॥ (७)
हे अराति! मैं जानता हूं कि तू दुर्बल बनाने वाला और पीड़ा देने वाला है. इस कारण तू मुझ से दूर रह. मैं तेरी विनाशक शक्ति को दूर कर सकता हूं. (७)
O Arati! I know you are weak and painful. That's why you stay away from me. I can remove your destructive power. (7)

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 7
उ॒त न॒ग्ना बोभु॑वती स्वप्न॒या स॑चसे॒ जन॑म् । अरा॑ते चि॒त्तं वीर्त्स॒न्त्याकू॑तिं॒ पुरु॑षस्य च ॥ (८)
हे अराति! तू मनुष्यों की कामनाओं को असफल करता है तथा उन्हें सदा प्रभाव के रूप में प्राप्त होता है. (८)
O Arati! You fail the desires of men and always receive them as effects. (8)
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