हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 5.8.3

कांड 5 → सूक्त 8 → मंत्र 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 8
यद॒साव॒मुतो॑ देवा अदे॒वः संश्चिकी॑र्षति । मा तस्या॒ग्निर्ह॒व्यं वा॑क्षी॒द्धवं॑ दे॒वा अ॑स्य॒ मोप॒ गुर्ममै॒व हव॒मेत॑न ॥ (३)
हे देवगण! जो भक्तिहीन पुरुष यज्ञ करना चाहता है, उस के हव्य को अग्नि तुम्हारे पास तक न पहुंचाएं. देवगण उस भक्ति हीन पुरुष के यज्ञ में न जा कर मेरे यज्ञ में पधारें. (३)
O Gods! The agni should not bring the desire of the godless man who wants to perform the yajna to you. The gods should not go to the yajna of that godless man and come to my yajna. (3)