हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 6)

अथर्ववेद: | सूक्त: 103
सं॒दानं॑ वो॒ बृह॒स्पतिः॑ सं॒दानं॑ सवि॒ता क॑रत् । सं॒दानं॑ मि॒त्रो अ॑र्य॒मा सं॒दानं॒ भगो॑ अ॒श्विना॑ ॥ (१)
हे शत्रु सेनाओ! बृहस्पति देव इन फेंके हुए पाशों के द्वारा तुम्हारा बंधन करें. सब के प्रेरक सविता देव तुम्हारा बंधन करें. मित्र तथा अर्यमा देव तुम्हारा बंधन करें. भग और अश्विनीकुमार तुम्हारा बंधन करें. (१)
O enemy armies! Jupiter Dev, bond you through these thrown loops. Everyone's motivator Savita Dev should bond with you. Friends and Aryama Dev bond with you. May Bhag and Ashwinikumar bond with you. (1)

अथर्ववेद (कांड 6)

अथर्ववेद: | सूक्त: 103
सं प॑र॒मान्त्सम॑व॒मानथो॒ सं द्या॑मि मध्य॒मान् । इन्द्र॒स्तान्पर्य॑हा॒र्दाम्ना॒ तान॑ग्ने॒ सं द्या॒ त्वम् ॥ (२)
मैं शत्रु की दूर देश वर्तिनी तथा समीप वर्तिनी सेनाओं को पाशों के द्वारा बांधता हूं. मैं समीप और दूर के मध्य स्थान में वर्तमान सेनाओं को भी पाशों से बांधता हूं. इस प्रकार की सेनाओं एवं सेनापतियों को संग्राम के स्वामी इंद्र त्याग दें. हे अग्नि! इंद्र द्वारा त्यागे हुए इन क्षत्रियों को तुम पाशों से बांधो. (२)
I bind the enemy's distant country and the near-country armies through loops. I also trap the present armies in the middle of the near and the far. Swami Indra of the struggle should abandon such armies and generals. O agni! Tie these Kshatriyas abandoned by Indra with loops. (2)

अथर्ववेद (कांड 6)

अथर्ववेद: | सूक्त: 103
अ॒मी ये युध॑मा॒यन्ति॑ के॒तून्कृ॒त्वानी॑क॒शः । इन्द्र॒स्तान्पर्य॑हा॒र्दाम्ना॒ तान॑ग्ने॒ सं द्या॒ त्वम् ॥ (३)
हमारे प्रति प्रसन्न बने हुए इंद्र देव और अग्नि देव हमारे उन शत्रुओं को बंधन में बांधें. (३)
May Indra Dev and Agni Dev, who are happy with us, bind those enemies of ours in bondage. (3)