हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 6.126.1

कांड 6 → सूक्त 126 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 6)

अथर्ववेद: | सूक्त: 126
उप॑ श्वासय पृथि॒वीमु॒त द्यां पु॑रु॒त्रा ते॑ वन्वतां॒ विष्ठि॑तं॒ जग॑त् । स दु॑न्दुभे स॒जूरिन्द्रे॑ण दे॒वैर्दू॒राद्दवी॑यो॒ अप॑ सेध॒ शत्रू॑न् ॥ (१)
हे दुंदुभि! तू अपने घोष से पृथ्वी और आकाश को भर दे. अनेक प्रकार से स्थित प्राणी अनेक देशों में तेरा जय घोष सुनें. इस प्रकार का तू संग्राम के देव इंद्र और उन के अनुचर मरुतों के द्वारा हमारे शत्रुओं को दूर से भी दूर स्थान पर भगा दे. (१)
O dundubi! Fill the earth and the sky with your voice. Animals located in many ways should hear your chants in many countries. In this way, you should drive our enemies away from far away through Indra, the god of war, and his followers Maruts. (1)