हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 6)

अथर्ववेद: | सूक्त: 133
य इ॒मां दे॒वो मेख॑लामाब॒बन्ध॒ यः सं॑न॒नाह॒ य उ॑ नो यु॒योज॑ । यस्य॑ दे॒वस्य॑ प्र॒शिषा॒ चरा॑मः॒ स पा॒रमि॑च्छा॒त्स उ॑ नो॒ वि मु॑ञ्चात् ॥ (१)
शत्रुओं को मारने में कुशल देव ने अपने शत्रु को मारने के लिए यह मेखला बांधी है, जो इस समय भी दूसरों की मेखला को बांधता है, जिस ने मेखला के द्वारा हमें अभिचार कर्म में लगाया है तथा जिस देव की आज्ञा से हम चलतेफिरते हैं, वह हमारे द्वारा प्रारंभ किए गए अभिचार की समाप्ति की इच्छा करे. वही हमें शत्रुओं से छुड़ाए. (१)
The God, who is skilled in killing the enemies, has tied this belt to kill his enemy, which binds the belt of others even at this time, who has engaged us in abhichar karma through the mekhala and the god by whose command we walk, he wishes to end the abhichar started by us. May he free us from our enemies. (1)

अथर्ववेद (कांड 6)

अथर्ववेद: | सूक्त: 133
आहु॑तास्य॒भिहु॑त॒ ऋषी॑णाम॒स्यायु॑धम् । पूर्वा॑ व्र॒तस्य॑ प्राश्न॒ती वी॑र॒घ्नी भ॑व मेखले ॥ (२)
हे मेखला! तुम आहुतियों के द्वारा संस्कार की गई तथा बंधन हेतु बुलाई गई हो, जिस से वे शत्रुओं का बंधन करते थे. तुम प्रारंभ किए गए कर्म से पहले होने वाली तथा शत्रुओं के वीरों का विनाश करने वाली हो. (२)
O melon! You have been cremated by the Ahutis and called for bondage, with which they used to bond the enemies. You are the one who precedes the action started and destroys the heroes of the enemies. (2)

अथर्ववेद (कांड 6)

अथर्ववेद: | सूक्त: 133
मृ॒त्योर॒हं ब्र॑ह्मचा॒री यदस्मि॑ नि॒र्याच॑न्भू॒तात्पुरु॑षं य॒माय॑ । तम॒हं ब्रह्म॑णा॒ तप॑सा॒ श्रमे॑णा॒नयै॑नं॒ मेख॑लया सिनामि ॥ (३)
मैं ब्रह्मचारी होने के कारण सूर्य के पुत्र यमराज का सेवक हूं. इसी कारण मैं प्राणियों में से अपने शत्रु के विनाश हेतु यमराज से प्रार्थना करता हूं. मारने योग्य उस शत्रु को मैं मंत्र, तप, शारीरिक दंड एवं मेखला के द्वारा बांधता हूं. (३)
Being a celibate, I am a servant of Yamraj, the son of the Sun. That is why I pray to Yamraj for the destruction of my enemy from among the creatures. I bind that enemy worthy of killing with mantra, penance, physical punishment and mekhala. (3)

अथर्ववेद (कांड 6)

अथर्ववेद: | सूक्त: 133
श्र॒द्धाया॑ दुहि॒ता तप॒सोऽधि॑ जा॒ता स्वसा॒ ऋषी॑णां भूत॒कृतां॑ ब॒भूव॑ । सा नो॑ मेखले म॒तिमा धे॑हि मे॒धामथो॑ नो धेहि॒ तप॑ इन्द्रि॒यं च॑ ॥ (४)
श्रद्धा की पुत्री सृष्टि के आदि में ब्रह्म के तप से उत्पन्न हुई. प्राणियों को जन्म देने वाले मरीचि आदि ऋषियों की जो यह मेखला है, वह इसी प्रकार उत्पन्न हुई है. हे मेखला! तू हमें क्रांतदर्शिनी बुद्धि प्रदान कर तथा हमें मेधा दे. इस के अतिरिक्त तू मुझे ताप तथा वीर्य प्रदान कर. (४)
Shraddha's daughter was born from the tenacity of Brahman in the beginning of creation. This is the belt of sages like Marichi, who gave birth to creatures, has been born in this way. O melon! Give us revolutionary wisdom and give us wisdom. In addition to this, you give me heat and semen. (4)

अथर्ववेद (कांड 6)

अथर्ववेद: | सूक्त: 133
यां त्वा॒ पूर्वे॑ भूत॒कृत॒ ऋष॑यः परिबेधि॒रे । सा त्वं परि॑ ष्वजस्व॒ मां दी॑र्घायु॒त्वाय॑ मेखले ॥ (५)
हे मेखला! पृथ्वी आदि तत्त्वों की रचना करने वाले प्राचीन ऋषियों ने तुझे बांधा था. दीर्घ आयु प्रदान करने के लिए तू मेरा भी आलिंगन कर. (५)
O melon! You were bound by the ancient sages who created the elements of earth etc. You also embrace me to provide long life. (5)