अथर्ववेद (कांड 6)
तर्दा॑पते॒ वघा॑पते॒ तृष्ट॑जम्भा॒ आ शृ॑णोत मे । य आ॑र॒ण्या व्यद्व॒रा ये के च॒ स्थ व्यद्व॒रास्तान्त्सर्वा॑ञ्जम्भयामसि ॥ (३)
हे हिंसक चूहों एवं पतंगों आदि के स्वामी! तुम तीखे दांतों वाले हो. तुम मेरे इस वचन को सुनो. तुम चाहे जंगल में रहने वाले हो अथवा ग्राम में निवास करने वाले हो, हम अपने इस अनुष्ठान द्वारा तुम्हारा विनाश करते हैं. (३)
O swami of violent rats and moths etc. You are sharp-toothed. You listen to this word of mine. Whether you live in a forest or a village dweller, we destroy you through this ritual. (3)