हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 6.54.1

कांड 6 → सूक्त 54 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 6)

अथर्ववेद: | सूक्त: 54
इ॒दं तद्यु॒ज उत्त॑र॒मिन्द्रं॑ शुम्भा॒म्यष्ट॑ये । अ॒स्य क्ष॒त्रं श्रियं॑ म॒हीं वृ॒ष्टिरि॑व वर्धया॒ तृण॑म् ॥ (१)
सभी देवों में श्रेष्ठ इंद्र को मैं अभीष्ट फल पाने के लिए स्तुति आदि से प्रसन्न करता हूं. हे इंद्र! अधिक वर्षा जिस प्रकार घास की वृद्धि करती है, उसी प्रकार तुम अभिचार से पीड़ित इस पुरुष के बल और पुत्र, पौत्रादि सहित धन की वृद्धि करो. (१)
I please Indra, the best of all gods, with praise etc. to get the desired results. O Indra! Just as more rain increases the grass, so increase the strength of this man suffering from desire and wealth including son, grandson. (1)