अथर्ववेद (कांड 7)
सं ब॒र्हिर॒क्तं ह॒विषा॑ घृ॒तेन॒ समिन्द्रे॑ण॒ वसु॑ना॒ सं म॒रुद्भिः॑ । सं दे॒वैर्वि॒श्वदे॑वेभिर॒क्तमिन्द्रं॑ गछतु ह॒विः स्वाहा॑ ॥ (१)
खुक आदि पात्र पुरोडाश और आज्य से पूर्ण हो कर इंद्र के साथ, वसुओं के साथ मरुद्गण के साथ तथा विश्वे देवों के साथ संपन्न हुए. इस प्रकार का पात्र इंद्र को प्राप्त हो तथा यह हवि शोभन आहुति वाला हो. (१)
Khuk etc. were completed with purodash and ajya, with Indra, with the Vasus with marudganas and with the vishwa devas. This kind of character should be received by Indra and it should be of Havi Shobhan sacrifice. (1)