हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 7.27.2

कांड 7 → सूक्त 27 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 7)

अथर्ववेद: | सूक्त: 27
प्र तद्विष्णु॑ स्तवते वी॒र्याणि मृ॒गो न भी॒मः कु॑च॒रो गि॑रि॒ष्ठाः । प॑रा॒वत॒ आ ज॑गम्या॒त्पर॑स्याः ॥ (२)
वीरतापूर्ण कर्मो के कारण विष्णु की स्तुति की जाती है. विष्णु सिंह के समान भयानक, भूमि पर विचरण करने वाले एवं पर्वत में स्थित हैं. वे विष्णु मेरी स्तुति सुन कर दूर देश से भी यहां आएं. (२)
Vishnu is praised due to heroic deeds. Vishnu is as terrible as a lion, roaming on the ground and located in the mountains. Those Vishnus should hear my praise and come here from far away countries. (2)