हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 7.4.1

कांड 7 → सूक्त 4 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 7)

अथर्ववेद: | सूक्त: 4
एक॑या च द॒शभि॑श्च सुहुते॒ द्वाभ्या॑मि॒ष्टये॑ विंश॒त्या च॑ । ति॒सृभि॑श्च॒ वह॑से त्रिं॒शता॑ च वि॒युग्भि॑र्वाय इ॒ह ता वि मु॑ञ्च ॥ (१)
हे शोभन आह्वान वाले वायु देव! सब के प्रेरक प्रजापति अपने रथ में जुड़े हुए ग्यारह घोड़ों के सहारे हमारे यज्ञ में आएं. तुम बाईस तथा तैंतीस अश्चों के द्वारा वहन किए जाते हो. हे वायु! हमारे यज्ञ में आ कर अपने घोड़ों को यहीं रोके रहो अर्थात्‌ हमारे यज्ञ से दूसरी जगह मत जाओ. (१)
O Vayu Dev with shobhan invocation! Prajapati, the motivator of all, came to our yagna with the help of eleven horses attached in his chariot. You are borne by twenty-two and thirty-three horses. O wind! Come to our yajna and stop your horses here, that is, do not go to another place from our yajna. (1)