हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 7.74.1

कांड 7 → सूक्त 74 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 7)

अथर्ववेद: | सूक्त: 74
परि॑ त्वाग्ने॒ पुरं॑ व॒यं विप्रं॑ सहस्य धीमहि । धृ॒षद्व॑र्णं दि॒वेदि॑वे ह॒न्तारं॑ भङ्गु॒राव॑तः ॥ (१)
हे अरणि मंथन से उत्तम अग्नि! तुम कर्म फलों को पूर्ण करने वाले एवं मेधावी हो. हम राक्षसों का हनन करने के लिए तुम्हें चारों ओर धारण करते हैं. तुम घर्षक रूप वाले एवं राक्षसों का प्रतिदिन विनाश करने वाले हो. (१)
O agni better than arani churning! You are the completer of the fruits of karma and are meritorious. We hold you around to abuse monsters. You are the one who has the abrasive form and destroys the demons every day. (1)