हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 8.10.2

कांड 8 → सूक्त 10 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 8)

अथर्ववेद: | सूक्त: 10
न च॑ प्रत्याह॒न्यान्मन॑सा॒ त्वा प्र॒त्याह॒न्मीति॑ प्र॒त्याह॑न्यात् ॥ (२)
वैसे तो इस का हनन नहीं करता, पर जब मन से सोचता है कि उस का हनन करूं तो हनन कर देता है. (२)
By the way, it does not violate it, but when he thinks with his mind that I should violate it, then he violates it. (2)