अथर्ववेद (कांड 8)
इन्द्रा॑सोमा॒ तप॑तं॒ रक्ष॑ उ॒ब्जतं॒ न्यर्पयतं वृषणा तमो॒वृधः॑ । परा॑ शृणीतम॒चितो॒ न्योषतं ह॒तं नु॒देथां॒ नि शि॑शीतम॒त्त्रिणः॑ ॥ (१)
हे इंद्र और सोम! राक्षसों को संतप्त करो तथा मार डालो. हे अभिलाषाएं पूर्ण करने वालो! अंधकार में बढ़ने वाले ज्ञानहीन राक्षसों को निम्न गति प्रदान करो तथा अत्यधिक जलाओ. मनुष्यों का भक्षण करने वाले राक्षसों को मारो तथा मारे हुए राक्षसों को हम से दूर ले जाओ. इस प्रकार उन की संख्या कम करो. (१)
O Indra and Soma! Kill and kill the demons. Those who fulfill your desires! Give low speed and excessive burn to the knowledgeless demons growing in darkness. Kill the demons who eat humans and take the slain demons away from us. Thus reduce the number of them. (1)
अथर्ववेद (कांड 8)
इन्द्रा॑सोमा॒ सम॒घशं॑सम॒भ्यघं तपु॑र्ययस्तु च॒रुर॑ग्नि॒माँ इ॑व । ब्र॑ह्म॒द्विषे॑ क्र॒व्यादे॑ घो॒रच॑क्षसे॒ द्वेषो॑ धत्तमनवा॒यं कि॑मीदिने ॥ (२)
हे इंद्र और सोम! अनर्थ बोलने वाले एवं पापी राक्षस को पराजित करो. वह राक्षस संताप को प्राप्त हो तथा अग्नि में डाले गए अन्न के समान जल जाए. तुम दोनों ब्राह्मणों से द्वेष करने वाले मांसाहारी एवं अब किसे, अब किसे खाऊं कहते हुए राक्षस के पीछे द्वेष और विरोध धारण करो. (२)
O Indra and Soma! Defeat the evil-speaking and sinful monster. That demon should get angry and burn like food poured in the agni. You two brahmins who hate non-vegetarians and now whom to eat, now whom to eat, and wear hatred and opposition behind the demon. (2)
अथर्ववेद (कांड 8)
इन्द्रा॑सोमा दु॒ष्कृतो॑ व॒व्रे अ॒न्तर॑नारम्भ॒णे तम॑सि॒ प्र वि॑ध्यतम् । यतो॒ नैषां॒ पुन॒रेक॑श्च॒नोदय॒त्तद्वा॑मस्तु॒ सह॑से मन्यु॒मच्छवः॑ ॥ (३)
हे इंद्र और सोम! तुम दुष्कर्म करने वाले राक्षसों को ढकने वाले तथा बिना सहारे वाले अंधकार में धकेलो, जिस से अंधकार में पड़े हुए राक्षसों में से एक भी बाहर न आ सके. तुम दोनों का यह बल राक्षसों को हराने के लिए क्रोध युक्त हो. (३)
O Indra and Soma! You push the evil demons into darkness covering and without support, so that not a single one of the demons lying in darkness can come out. This force of both of you to defeat the demons is angry. (3)
अथर्ववेद (कांड 8)
इन्द्रा॑सोमा व॒र्तय॑तं दि॒वो व॒धं सं पृ॑थि॒व्या अ॒घशं॑साय॒ तर्ह॑णम् । उत्त॑क्षतं स्व॒र्यं पर्व॑तेभ्यो॒ येन॒ रक्षो॑ वावृधा॒नं नि॒जूर्व॑थः ॥ (४)
हे इंद्र एवं सोम! अंतरिक्ष से वध का साधन आयुध एक बार ही चलाओ. पाप की बातें करने वाले राक्षसों के वध के लिए अपना आयुध पृथ्वी से भी एक बार ही चलाओ. उन के वध के लिए अपने हिंसक वज्र को तेज करो तथा शब्द करते हुए जिस आयुध वज्र से तुम ने मेघों से जल प्राप्त किया है, उस से राक्षसों का वध करो. (४)
O Indra and Soma! Run the means of slaughter from space ordnance only once. Run your armament from the earth even once to kill the demons who talk about sin. To kill them, intensify your violent thunderbolt and kill the demons with the weapon thunderbolt with which you have received water from the clouds. (4)
अथर्ववेद (कांड 8)
इन्द्रा॑सोमा व॒र्तय॑तं दि॒वस्पर्य॑ग्नित॒प्तेभि॑र्यु॒वमश्म॑हन्मभिः । तपु॑र्वधेभिर॒जरे॑भिर॒त्त्रिणो॒ नि पर्शा॑ने विध्यतं॒ यन्तु॑ निस्व॒रम् ॥ (५)
हे इंद्र और सोम! तुम दोनों अग्नि के द्वारा तपाए हुए, फौलाद के बने हुए, संतापकारी एवं पुराने न होने वाले अपने आयुधों को अंतरिक्ष में घुमाओ तथा उन के द्वारा मानवभक्षी राक्षसों को समीपवर्ती प्रदेश में भेज दो, जहां जा कर वे मर जाएं. (५)
O Indra and Soma! Both of you, heated by agni, made of steel, anguish and old, rotate your weapons in space and send the man-eating demons through them to the nearby region, where they will die. (5)
अथर्ववेद (कांड 8)
इन्द्रा॑सोमा॒ परि॑ वां भूतु वि॒श्वत॑ इ॒यं म॒तिः क॒क्ष्याश्वे॑व वाजिना । यां वां॒ होत्रां॑ परिहि॒नोमि॑ मे॒धये॒मा ब्रह्मा॑णि नृ॒पती॑ इव जिन्वतम् ॥ (६)
हे इंद्र तथा सोम! तुम दोनों हमारे द्वारा की गई स्तुति को उसी प्रकार सब ओर से स्वीकार करो, जिस प्रकार रस्सी शक्तिशाली घोड़ों को बांध लेती है. हम आह्वान के योग्य बुद्धि से तुम दोनों को प्रेरित करते हैं. हमारे मंत्र तुम्हें उसी प्रकार प्रसन्न करें, जिस प्रकार राजा चारणों के वचन सुन कर प्रसन्न होते हैं. (६)
O Indra and Soma! Both of you accept the praise made by us from all sides, just as the rope binds powerful horses. We inspire both of you with wisdom worthy of invocation. May our mantras please you in the same way that kings are happy to hear the words of charans. (6)
अथर्ववेद (कांड 8)
प्रति॑ स्मरेथां तु॒जय॑द्भि॒रेवै॑र्ह॒तं द्रु॒हो र॒क्षसो॑ भङ्गु॒राव॑तः । इन्द्रा॑सोमा दु॒ष्कृते॒ मा सु॒गं भू॒द्यो मा॑ क॒दा चि॑दभि॒दास॑ति द्रु॒हुः ॥ (७)
हे इंद्र एवं सोम! तुम दोनों शक्तिशाली एवं गमन के साधन अश्चों के द्वारा हमारा स्मरण करते हुए आओ तथा आ कर हम से द्रोह करने वाले और विनाशकारी राक्षसों की हिंसा करो. हे इंद्र एवं सोम! बुरे कर्म करने वाले राक्षस को सुख न मिले. जो दुष्ट एक बार भी मुझे बाधा पहुंचाए, उसे तुम दुःख दो. (७)
O Indra and Soma! Both of you come remembering us through the powerful and the means of traveling, and come and do violence against the demons who are hostile to us and destructive. O Indra and Soma! The demon who does bad deeds should not get happiness. Let the wicked one who hinders me even once, give him sorrow. (7)
अथर्ववेद (कांड 8)
यो मा॒ पाके॑न॒ मन॑सा॒ चर॑न्तमभि॒चष्टे॒ अनृ॑तेभि॒र्वचो॑भिः । आप॑ इव काशिना॒ संगृभीता॒ अस॑न्न॒स्त्वास॑त इन्द्र व॒क्ता ॥ (८)
हे इंद्र! जो राक्षस सच्चे मन से कार्य करने वाले मुझ ब्राह्मण को शाप देता है और मुझ से असत्य वचन बोलता है, उस की बात अंजलि से निकल जाने वाले जल के समान सारहीन है. असत्य बोलने वाला वह स्वयं ही शून्य हो जाए अर्थात् नष्ट हो जाए. (८)
O Indra! The demon who curses me, the Brahmin who works with a true heart and speaks untrue words to me, is as immaterial as the water coming out of Anjali. He who speaks untruth should himself become void, that is, he should be destroyed. (8)