अथर्ववेद (कांड 8)
यदि॑ वा॒हमनृ॑तदेवो॒ अस्मि॒ मोघं॑ वा दे॒वाँ अ॑प्यू॒हे अ॑ग्ने । किम॒स्मभ्यं॑ जातवेदो हृणीषे द्रोघ॒वाच॑स्ते निरृ॒थं स॑चन्ताम् ॥ (१४)
हे अग्नि देव! न तो मैं देवों की निंदा करने वाला हूं तथा न मैं स्तुति योग्य देवों के प्रति व्यर्थ धारण करता हूं. हे जातवेद अग्नि देव! फिर मुझ पर तुम क्रोध क्यों करते हो? मुझ से अतिरिक्त जो देव विरोधी राक्षस हैं, वे नाश को प्राप्त हों. (१४)
O God of Agni! Neither am I the one who condemns the gods, nor do I be vain to the praiseworthy gods. O Jataveda Agni Dev! Then why are you angry with me? Apart from me, those who are anti-God demons should be destroyed. (14)