हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 9.10.5

कांड 9 → सूक्त 10 → मंत्र 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 9)

अथर्ववेद: | सूक्त: 10
म॒ध्यन्दि॑न॒ उद्गा॑यत्यपरा॒ह्णः प्रति॑ हरत्यस्तं॒यन्नि॒धन॑म् । नि॒धनं॒ भूत्याः॑ प्र॒जायाः॑ पशू॒नां भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥ (५)
सूर्य माध्यंदिन अर्थात्‌ दोपहर के समय उस की प्रशंसा करते हैं और दोपहर के बाद उस की मृत्यु का विनाश करते हैं. जो इस बात को जानता है, वह समृद्धि की प्रजाओं और पशुओं को प्राप्त करता है. (५)
The sun praises him in the afternoon and destroys his death after noon. He who knows this receives the people and animals of prosperity. (5)