हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 9.14.10

कांड 9 → सूक्त 14 → मंत्र 10 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 9)

अथर्ववेद: | सूक्त: 14
ति॒स्रो म॒तॄस्त्रीन्पि॒तॄन्बिभ्र॒देक॑ उ॒र्ध्वस्त॑स्थौ॒ नेमव॑ ग्लापयन्त । म॒न्त्रय॑न्ते दि॒वो अ॒मुष्य॑ पृ॒ष्ठे वि॑श्व॒विदो॒ वाच॒मवि॑श्वविन्नाम् ॥ (१०)
तीन माताओं और तीन पिताओं को धारण करता हुआ सूर्य इन के मध्य में स्थित है. विश्व का ज्ञान रखने वाले आकाश के पृष्ठ पर यही वाणी बोलते हैं, जिसे दूसरे लोग नहीं सुन पाते. (१०)
The sun is located in the middle of them holding three mothers and three fathers. Those who have knowledge of the world speak this voice on the surface of the sky, which other people cannot hear. (10)