हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 9.15.22

कांड 9 → सूक्त 15 → मंत्र 22 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 9)

अथर्ववेद: | सूक्त: 15
कृ॒ष्णं नि॒यानं॒ हर॑यः सुप॒र्णा अ॒पो वसा॑ना॒ दिव॒मुत्प॑तन्ति । तं आव॑वृत्र॒न्त्सद॑नादृ॒तस्यादिद्घृ॒तेन॑ पृथि॒वीं व्यूदुः ॥ (२२)
जल को लपेटती हुई किरणें आकाश में उछलती हैं. वे ही किरणें दक्षिणायन रूप में सूर्यमंडल से लौटती हैं, तभी धरती जल से भीग जाती है. (२२)
The rays that wrap the water jump into the sky. Those rays return from the solar system in dakshinayan form, only then the earth gets wet with water. (22)