हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 9)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
उप॒मितां॑ प्रति॒मिता॒मथो॑ परि॒मिता॑मु॒त । शाला॑या वि॒श्ववा॑राया न॒द्धानि॒ वि चृ॑तामसि ॥ (१)
उपमिता, प्रतिमिता और परिमिता जो शालाएं हैं, उन में से किसी भी शाला को खोलते हुए हम सब के लिए वरण करने योग्य शाला के द्वार खोलते हैं. (१)
By opening any of the schools that are upmita, pratimita and parimita, we open the doors of a selectable school for all of us. (1)

अथर्ववेद (कांड 9)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
यत्ते॑ न॒द्धं वि॑श्ववारे॒ पाशो॑ ग्र॒न्थिश्च॒ यः कृ॒तः । बृह॒स्पति॑रिवा॒हं ब॒लं वा॒चा वि स्रं॑सयामि॒ तत् ॥ (२)
हे वरण करने योग्य शाला! तुझ में जो बंधन है, जो पाश है और जो गाठे हैं, उन्हें बृहस्पति के समान शक्तिशाली मैं अपने मंत्र बल से खोलता हूं. (२)
O selectable school! The bondage in you, the loop and the ones that are knots, I open them as powerful as Jupiter with my mantra force. (2)

अथर्ववेद (कांड 9)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
आ य॑याम॒ सं ब॑बर्ह ग्र॒न्थींश्च॑कार ते दृ॒ढान् । परूं॑षि वि॒द्वाञ्छस्ते॒वेन्द्रे॑ण॒ वि चृ॑तामसि ॥ (३)
हे शाला! बनाने वाले ने तुम्हें बहुत लंबा बनाया है. उस ने तुझ में मजबूत गांठे लगाई हैं उन कठोर गांठों को जानता हुआ मैं इंद्र की शक्ति से उन्हें खोलता हूं. (३)
O school! The creator has made you very tall. He has put strong knots in you, knowing those hard knots, I open them with the power of Indra. (3)

अथर्ववेद (कांड 9)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
वं॒शानां॑ ते॒ नह॑नानां प्राणा॒हस्य॒ तृण॑स्य च । प॒क्षाणां॑ विश्ववारे ते न॒द्धानि॒ वि चृ॑तामसि ॥ (४)
हे सब के द्वारा वरण करने योग्य शाला! तेरे बांसों के बंधनों की, लकड़ियों की, तिनकों की तथा वृक्षों की जो गांठे हैं, मैं उन्हें खोलता हूं. (४)
O school that is acceptable to all! I open the knots of your bamboos, of wood, of straws and of trees. (4)

अथर्ववेद (कांड 9)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
सं॑दं॒शानां॑ पल॒दानां॒ परि॑ष्वञ्जल्यस्य च । इ॒दं मान॑स्य॒ पत्न्या॑ न॒द्धानि॒ वि चृ॑तामसि ॥ (५)
मैं मान की पत्नी अर्थात्‌ शाला के द्वारा बांधे गए संदेशों के, पलदों के, परिष्यंद के तथा वृणो के बंधनों को खोलता हूं. (५)
I open the bonds of messages, palms, refinements and trees tied by Mann's wife, that is, the school. (5)

अथर्ववेद (कांड 9)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
यानि॑ ते॒ऽन्तः शि॒क्यान्याबे॒धू र॒ण्या॑य॒ कम् । प्र ते॒ तानि॑ चृतामसि शि॒वा मा॑नस्य पत्नी न॒ उद्धि॑ता त॒न्वे भव ॥ (६)
हे कल्याण करने वाली मान की पत्नी! तुझ में भीतर जो छीके बांधे गए हैं तथा मचान बनाए गए हैं, हम उन्हें खोलते हैं. तुम हमें स्वर्गलोक में सुख दो तथा हम पर क्रोधित न होओ. (६)
O wife of the welfare man! We open the sneezes and scaffoldings that have been tied inside you. May you give us happiness in heaven and do not be angry at us. (6)

अथर्ववेद (कांड 9)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
ह॑वि॒र्धान॑मग्नि॒शालं॒ पत्नी॑नां॒ सद॑नं॒ सदः॑ । सदो॑ दे॒वाना॑मसि देवि शाले ॥ (७)
हे शाला! तुम में हव्य प्राप्त अग्नि, कुंड, देवों के बैठने योग्य आसन तथा पत्नियों सहित यजमानों के बैठने योग्य स्थान है. (७)
O school! You have a agni, kund, seating seating posture of gods and a place for the hosts, including wives. (7)

अथर्ववेद (कांड 9)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
अक्षु॒मोप॒शं वित॑तं सहस्रा॒क्षं वि॑षू॒वति॑ । अव॑नद्धम॒भिहि॑तं॒ ब्रह्म॑णा॒ वि चृ॑तामसि ॥ (८)
हे दिव्यता संपन्न शाला! शयन कक्ष में विस्तृत झरोखा है. इस प्रकार के शयन कक्ष को मैं मंत्रों की शक्ति से खोलता हूं. (८)
O school of divinity! There is a wide window in the bedroom. I open this type of bedroom with the power of mantras. (8)
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