अथर्ववेद (कांड 9)
यो वै कु॒र्वन्तं॒ नाम॒र्तुं वेद॑ । कु॑र्व॒तींकु॑र्वतीमे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रिय॒मा द॑त्ते । ए॒ष वै कु॒र्वन्नाम॒र्तुर्यद॒जः पञ्चौ॑दनः । निरे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रियं॑ दहति॒ भव॑त्या॒त्मना॒ यो॒जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥ (३२)
जो कुर्वंती नामक ऋतु को निश्चित रूप से जानता है, वह कुर्वती का ज्ञान करता हुआ भी अप्रिय शत्रुओं तथा बांधवों के ऐश्वर्य को छीन लेता है. यह जो कुर्वती नाम की ऋतु है, वह पंचौदन रूप अज ही है. यह जानने वाला व्यक्ति अपने अप्रिय शत्रुओं एवं बांधवों के ऐश्वर्य को अपनी शक्ति से जला डालता है तथा दक्षिणा से प्रकाशित होते हुए अज को पंचौदन के रूप में दान करता है. (३२)
One who knows the season called Kurwanti for sure, even while knowing Kurvati, takes away the opulence of unpleasant enemies and dams. This is the season called Kurvati, which is the Panchaudan form. The person who knows this burns the opulence of his unpleasant enemies and dams with his power and donates it to Aj in the form of Panchaudan, illuminated by Dakshina. (32)