हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.10.11

मंडल 1 → सूक्त 10 → श्लोक 11 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 10
आ तू न॑ इन्द्र कौशिक मन्दसा॒नः सु॒तं पि॑ब । नव्य॒मायुः॒ प्र सू ति॑र कृ॒धी स॑हस्र॒सामृषि॑म् ॥ (११)
हे इंद्र! तुम हमारे पास शीघ्र आओ. हे कुशिक ऋषि के पुत्र! प्रसन्न होकर सोमपान करो, देवताओं द्वारा प्रशंसनीय यज्ञकर्म करने के लिए हमारा जीवन बढ़ाओ एवं मुझ ऋषि को हजारों धन वाला बनाओ. (११)
O Indra! You come to us soon. O son of sage Kushik! Be happy and do sompan, extend our life to perform praiseworthy yajnakarma by the gods and make my sage with thousands of riches. (11)