ऋग्वेद (मंडल 1)
द्युभि॑र॒क्तुभिः॒ परि॑ पातम॒स्मानरि॑ष्टेभिरश्विना॒ सौभ॑गेभिः । तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑तिः॒ सिन्धुः॑ पृथि॒वी उ॒त द्यौः ॥ (२५)
हे अश्चिनीकुमारो! हमें दिवसों, निशाओं एवं विनाशरहित सौभाग्यो द्वारा सुरक्षित बनाओ, मित्र, वरुण, अदिति, सिंधु, पृथ्वी एवं आकाश इस स्तुति का आदर करें. (२५)
O aschinikumaro! Make us safe by the days, the nishas and the unforeseen good fortunes, may friends, Varuna, Aditi, Sindhu, Prithvi and Akash respect this praise. (25)