ऋग्वेद (मंडल 1)
भ॒द्रा अश्वा॑ ह॒रितः॒ सूर्य॑स्य चि॒त्रा एत॑ग्वा अनु॒माद्या॑सः । न॒म॒स्यन्तो॑ दि॒व आ पृ॒ष्ठम॑स्थुः॒ परि॒ द्यावा॑पृथि॒वी य॑न्ति स॒द्यः ॥ (३)
सूर्य के कल्याणकारक, विचित्र लोगों द्वारा क्रमशः स्तुत एवं हमारे द्वारा नमस्कृत हरित नाम के घोड़े आकाश के ऊपर उपस्थित होकर शीघ्र ही धरती और आकाश का परिभ्रमण कर लेते हैं. (३)
The horses named Harit, praised by the good, strange people of the sun and greeted by us respectively, appear on top of the sky and soon revolve around the earth and the sky. (3)