ऋग्वेद (मंडल 1)
त्वं न॑ इन्द्र रा॒या परी॑णसा या॒हि प॒थाँ अ॑ने॒हसा॑ पु॒रो या॑ह्यर॒क्षसा॑ । सच॑स्व नः परा॒क आ सच॑स्वास्तमी॒क आ । पा॒हि नो॑ दू॒रादा॒राद॒भिष्टि॑भिः॒ सदा॑ पाह्य॒भिष्टि॑भिः ॥ (९)
हे इंद्र! तुम राक्षसहीन एवं पापरहित मार्ग द्वारा हमें देने के लिए धन लेकर हमारे समीप आओ. तुम दूरवर्ती एवं निकटवर्ती स्थान से आकर हमसे मिलो, दूर एवं समीप से यज्ञ निर्वाह के लिए हमारी रक्षा करो तथा हमें पालो. (९)
O Indra! Come to us with money to give us through the demonless and sinless way. Come from a distant and near place and meet us, protect us from a distance and near to perform the yajna and raise us up. (9)