हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 166
तन्नु वो॑चाम रभ॒साय॒ जन्म॑ने॒ पूर्वं॑ महि॒त्वं वृ॑ष॒भस्य॑ के॒तवे॑ । ऐ॒धेव॒ याम॑न्मरुतस्तुविष्वणो यु॒धेव॑ शक्रास्तवि॒षाणि॑ कर्तन ॥ (१)
हे मरुतो! मैं तुम्हारे प्राचीनतम महत्त्व का इसलिए वर्णन कर रहा हूं कि तुम यज्ञवेदी पर शीघ्र आकर यज्ञ संपन्न कराओ. हे गमन के समय विशाल ध्वनि करने वाले एवं समस्त कार्य करने में समर्थ! तुम्हारे यज्ञस्थल में आते ही समिधाओं की ज्वाला उसी प्रकार महती हो जाती है, जिस प्रकार तुम रण में अपना पराक्रम दिखाते हो. (१)
O Maruto! I am describing your oldest importance so that you should come to the yajna vedi soon and perform the yajna. O those who make great noises and are able to do all the work at the time of departure! As soon as you come to the place of your yajna, the flame of the samidahas becomes great in the same way that you show your might in the wilderness. (1)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 166
नित्यं॒ न सू॒नुं मधु॒ बिभ्र॑त॒ उप॒ क्रीळ॑न्ति क्री॒ळा वि॒दथे॑षु॒ घृष्व॑यः । नक्ष॑न्ति रु॒द्रा अव॑सा नम॒स्विनं॒ न म॑र्धन्ति॒ स्वत॑वसो हवि॒ष्कृत॑म् ॥ (२)
प्रिय पुत्र के समान मधुर हव्य धारण करने वाले एवं यज्ञों में रक्षा करने में प्रवृत्त मरुद्गण प्रसन्नचित्त होकर क्रीड़ा करते हैं. नम्र यजमान की रक्षा के लिए स्वाधीन शक्ति वाले एवं यजमान को कभी कष्ट न पहुंचाने वाले रुद्रपुत्र मरुद्गण आते हैं. (२)
Like a beloved son, the deserts who wear a sweet heart and are inclined to protect in the yagnas play happily. Rudraputra Marudgana, who has independent power and never hurts the host, comes to protect the humble host. (2)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 166
यस्मा॒ ऊमा॑सो अ॒मृता॒ अरा॑सत रा॒यस्पोषं॑ च ह॒विषा॑ ददा॒शुषे॑ । उ॒क्षन्त्य॑स्मै म॒रुतो॑ हि॒ता इ॑व पु॒रू रजां॑सि॒ पय॑सा मयो॒भुवः॑ ॥ (३)
हवि देने वाले जिस यजमान की आहुति के कारण प्रसन्न, सबके रक्षक एवं मरणरहित मरुद्गण अधिक मात्रा में धन देते हैं, उसी यजमान के हितकारी सखा के समान मरुद्गण सारे संसार को सुखरूपी जल से भली-भांति सींचते हैं. (३)
Because of the sacrifice of the host, which gives happiness, protectors of all and the uninformed deserts give more money, like the beneficial friend of the same host, the deserts irrigate the whole world well with the water of happiness. (3)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 166
आ ये रजां॑सि॒ तवि॑षीभि॒रव्य॑त॒ प्र व॒ एवा॑सः॒ स्वय॑तासो अध्रजन् । भय॑न्ते॒ विश्वा॒ भुव॑नानि ह॒र्म्या चि॒त्रो वो॒ यामः॒ प्रय॑तास्वृ॒ष्टिषु॑ ॥ (४)
हे मरुतो! तुम्हारे घोड़े अपनी शक्ति के द्वारा सारे संसार का भ्रमण करते हैं. वे सारथि के बिना ही तेज चलते हैं. तुम्हारी गति इतनी विचित्र है कि तुम्हारे चलने से समस्त प्राणी और अट्टालिकाएं उसी प्रकार कांप उठती हैं, जिस प्रकार कोई युद्ध में उठी हुई तलवार को देखकर कांपता है. (४)
O Marutas! Your horses through their power travel all over the world. They walk fast without the charioteer. Your speed is so strange that all beings and lofts tremble when you walk, just as one trembles when he sees a sword raised in battle. (4)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 166
यत्त्वे॒षया॑मा न॒दय॑न्त॒ पर्व॑तान्दि॒वो वा॑ पृ॒ष्ठं नर्या॒ अचु॑च्यवुः । विश्वो॑ वो॒ अज्म॑न्भयते॒ वन॒स्पती॑ रथी॒यन्ती॑व॒ प्र जि॑हीत॒ ओष॑धिः ॥ (५)
शीघ्र गति वाले मरुद्गण जिस समय पर्वतों एवं गुफाओं को गुंजाते हैं अथवा मानवों के कल्याण हेतु पर्वतों की चोटियों पर चढ़ते हैं, उस समय तुम्हारे गमन के कारण समस्त वनस्पतियां डर जाती हैं और जिस प्रकार रथ पर बैठी स्त्री एक स्थान से दूसरे स्थान पर चली जाती है, उसी प्रकार उड़कर दूर पहुंच जाती हैं. (५)
At the time when the fast-moving deserts echo the mountains and caves or climb the peaks of the mountains for the welfare of human beings, all the vegetation is scared because of your movement and just as the woman sitting on the chariot goes from one place to another, so does the flying and reaching away. (5)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 166
यू॒यं न॑ उग्रा मरुतः सुचे॒तुनारि॑ष्टग्रामाः सुम॒तिं पि॑पर्तन । यत्रा॑ वो दि॒द्युद्रद॑ति॒ क्रिवि॑र्दती रि॒णाति॑ प॒श्वः सुधि॑तेव ब॒र्हणा॑ ॥ (६)
हे विशाल शक्ति संपन्न मरुतो! तुम शोभनचित्त एवं हिंसारहित होकर हमारी सुबुद्धि को बढ़ाओ. जिस समय तुम्हारी चलते हुए दांतों वाली बिजली बादलों को प्रकाशित करती है, उस समय वह तलवार के समान पशुओं का नाश करती है. (६)
O you with great power, Maruto! You increase our wisdom by being unbelievable and violence. At the time when the lightning with your teeth illuminates the clouds while you are walking, it destroys the animals like a sword. (6)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 166
प्र स्क॒म्भदे॑ष्णा अनव॒भ्ररा॑धसोऽलातृ॒णासो॑ वि॒दथे॑षु॒ सुष्टु॑ताः । अर्च॑न्त्य॒र्कं म॑दि॒रस्य॑ पी॒तये॑ वि॒दुर्वी॒रस्य॑ प्रथ॒मानि॒ पौंस्या॑ ॥ (७)
अविरत दान वाले, नाशरहित धन वाले, सकल शत्रुनाशक एवं यज्ञों में भली प्रकार स्तुति पाने वाले मरुद्गण यज्ञ में अपने मित्र इंद्र की अर्चना करते हैं, क्योंकि वे शत्रुनाशक इंद्र के पूर्वकृत वीर कमों को जानते हैं. (७)
The deserters, who are uninvited, with no lossless wealth, who are well-praised in the yagnas, worship their friend Indra in the yajna, because they know the brave deeds of the enemy-destroyer Indra. (7)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 166
श॒तभु॑जिभि॒स्तम॒भिह्रु॑तेर॒घात्पू॒र्भी र॑क्षता मरुतो॒ यमाव॑त । जनं॒ यमु॑ग्रास्तवसो विरप्शिनः पा॒थना॒ शंसा॒त्तन॑यस्य पु॒ष्टिषु॑ ॥ (८)
हे महान्‌ तेजस्वी एवं शक्तिशाली मरुतो! जिस मनुष्य को तुमने कुटिल स्वभाव वाले पाप से बचाया है एवं पुत्र-पौत्रादि की पुष्टि से संबंधित निंदा से रक्षा की है, उसका पालन अगणित भोग वस्तुओं द्वारा करो. (८)
O great, mighty and mighty Maruto! The man whom you have saved from sin of a devious nature and protected from the blasphemy concerning the confirmation of the Son and grandson, follow him with innumerable indulgences. (8)
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