ऋग्वेद (मंडल 1)
ए॒ष वः॒ स्तोमो॑ मरुत इ॒यं गीर्मा॑न्दा॒र्यस्य॑ मा॒न्यस्य॑ का॒रोः । एषा या॑सीष्ट त॒न्वे॑ व॒यां वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥ (१०)
हे मरुतो! आदर के योग्य मांदर्य कवि का यह स्तुतिसमूह तुम्हारे लिए है. यह स्तुति तुम्हें इस अभिलाषा से प्राप्त होती है कि स्तुतिकर्तता का शरीर पुष्ट हो. हम भी इस स्तुति द्वारा अन्न, बल एवं दीर्घ-आयु प्राप्त करें. (१०)
O Maruto! This group of praises of the worthy mandarya poet is for you. This praise comes to you from the desire that the body of praise be strengthened. Let us also gain food, strength and long-life through this praise. (10)