ऋग्वेद (मंडल 1)
त्वमी॑शिषे वसुपते॒ वसू॑नां॒ त्वं मि॒त्राणां॑ मित्रपते॒ धेष्ठः॑ । इन्द्र॒ त्वं म॒रुद्भिः॒ सं व॑द॒स्वाध॒ प्राशा॑न ऋतु॒था ह॒वींषि॑ ॥ (५)
अगस्त्य ने कहा-“हे धन के अधिपति, मित्रों के मित्र, सबके स्वामी एवं आश्रय इंद्र! तुम मरुतों से कहो कि हमारा यज्ञ पूरा हो गया है. तुम ठीक समय पर आकर हमारा हव्य भक्षण करो.” (५)
Agastya said, "O lord of wealth, friend of friends, lord of all and shelter Indra! Tell the maruts that our yajna is complete. You come at the right time and eat our havya." (5)