ऋग्वेद (मंडल 1)
तृ॒ण॒स्क॒न्दस्य॒ नु विशः॒ परि॑ वृङ्क्त सुदानवः । ऊ॒र्ध्वान्नः॑ कर्त जी॒वसे॑ ॥ (३)
हे शोभन दान वाले मरुतो! यद्यपि मेरी प्रजा तिनकों के समान तुच्छ हैं तथापि उनकी रक्षा करो तथा हमें चिरकाल तक जीवित रहने के लिए उन्नत करो. (३)
O you who don't have the gifts! Though My people are as despised as the straws, protect them and make us live forever. (3)