हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.173.12

मंडल 1 → सूक्त 173 → श्लोक 12 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 173
मो षू ण॑ इ॒न्द्रात्र॑ पृ॒त्सु दे॒वैरस्ति॒ हि ष्मा॑ ते शुष्मिन्नव॒याः । म॒हश्चि॒द्यस्य॑ मी॒ळ्हुषो॑ य॒व्या ह॒विष्म॑तो म॒रुतो॒ वन्द॑ते॒ गीः ॥ (१२)
हे इंद्र! संग्राम उपस्थित होने पर मरुद्गणों के साथ हमें छोड़ मत देना. हे शक्तिशाली! तुम्हारा यज्ञभाग मरुतों से अलग है. हमारी फलों से मिली हुई स्तुति हवियुक्त एवं दानशील मरुतों की वंदना करती है. (१२)
O Indra! Don't leave us with the deserts when sangram is present. O powerful! Your sacrificial part is different from the maruts. The praise from our fruits worships the hapished and charitable maruts. (12)