ऋग्वेद (मंडल 1)
मत्सि॑ नो॒ वस्य॑इष्टय॒ इन्द्र॑मिन्दो॒ वृषा वि॑श । ऋ॒घा॒यमा॑ण इन्वसि॒ शत्रु॒मन्ति॒ न वि॑न्दसि ॥ (१)
हे सोम! तुम हमारी धनप्राप्ति के लिए इंद्र को प्रसन्न करो एवं कामवर्षी इंद्र के भीतर प्रवेश करो. तुम शत्रुओं की हिंसा करते हुए उन्हें घेर लेते हो. कोई भी शत्रु तुम्हारे समीप नहीं आता. (१)
Hey Mon! Please Indra for our wealth and enter within the working Indra. You surround the enemies by violenceing them. No enemy comes close to you. (1)
ऋग्वेद (मंडल 1)
तस्मि॒न्ना वे॑शया॒ गिरो॒ य एक॑श्चर्षणी॒नाम् । अनु॑ स्व॒धा यमु॒प्यते॒ यवं॒ न चर्कृ॑ष॒द्वृषा॑ ॥ (२)
हे होता! अपनी स्तुतिरूपी वाणी को इंद्र में स्थापित करो. वे ज्ञान वाले मनुष्यों के एकमात्र आश्रय हैं. स्वधा शब्द के बाद उन्हें भी हव्य अन्न दिया जाता है. किसान जिस प्रकार पके जौ को ग्रहण करता है, उसी प्रकार इंद्र हमारा हव्य स्वीकार करते हैं. (२)
It was! Establish your praiseworthy voice in Indra. They are the only refuge for humans with knowledge. After the word 'Swadha', they are also given the auspicious food. Just as the farmer accepts ripe barley, so Indra accepts our happiness. (2)
ऋग्वेद (मंडल 1)
यस्य॒ विश्वा॑नि॒ हस्त॑योः॒ पञ्च॑ क्षिती॒नां वसु॑ । स्पा॒शय॑स्व॒ यो अ॑स्म॒ध्रुग्दि॒व्येवा॒शनि॑र्जहि ॥ (३)
जिन इंद्र के हाथों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद पांचों प्रकार के जनों को प्रसन्न करने वाला सभी प्रकार का अन्न है, वे इंद्र हमसे द्रोह करने वाले को वज्र बनकर नष्ट करें. (३)
In the hands of Indra, who has all kinds of food to please the five types of people like Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas, Shudras and Nishads, may Indra destroy those who rebel against us by becoming a thunderbolt. (3)
ऋग्वेद (मंडल 1)
असु॑न्वन्तं समं जहि दू॒णाशं॒ यो न ते॒ मयः॑ । अ॒स्मभ्य॑मस्य॒ वेद॑नं द॒द्धि सू॒रिश्चि॑दोहते ॥ (४)
हे इंद्र! सोमरस न निचोड़ने वालों, दुःसाध्य विनाश वालों एवं सुख न पहुंचाने वालों का नाश करो. ऐसे लोगों का धन हमें दो. तुम्हारा स्तोता ही धन पाता है. (४)
O Indra! Destroy those who do not squeeze somers, those who do not cause misery, and those who do not bring happiness. Give us the money of such people. Your stota gets wealth. (4)
ऋग्वेद (मंडल 1)
आवो॒ यस्य॑ द्वि॒बर्ह॑सो॒ऽर्केषु॑ सानु॒षगस॑त् । आ॒जाविन्द्र॑स्येन्दो॒ प्रावो॒ वाजे॑षु वा॒जिन॑म् ॥ (५)
हे सोम! उस यजमान की रक्षा करो, जिसके स्तोत्र और हव्य संबंधी मंत्रों में तुम सदा स्थित रहते हो. हे सोम! धन के लिए होने वाले युद्धों में अन्न के स्वामी इंद्र की रक्षा करो. (५)
Hey Mon! Protect the host in whose hymns and mantras of Havan you are always in. Hey Mon! Protect Indra, the lord of food, in wars for wealth. (5)
ऋग्वेद (मंडल 1)
यथा॒ पूर्वे॑भ्यो जरि॒तृभ्य॑ इन्द्र॒ मय॑ इ॒वापो॒ न तृष्य॑ते ब॒भूथ॑ । तामनु॑ त्वा नि॒विदं॑ जोहवीमि वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥ (६)
हे इंद्र! जिस प्रकार जल प्यासे को प्रसन्न करता है, उसी प्रकार तुमने प्राचीन स्तुतिकर्ता पर कृपा की थी. इसीलिए मैं तुम्हारी सुखदायक स्तुति बार-बार कर रहा हूं. मैं अन्न, बल एवं दीर्घ आयु प्राप्त करूं. (६)
O Indra! Just as water pleases the thirsty, so you were kind to the ancient praiseor. That's why I'm praising you again and again. I get food, strength and long life. (6)