हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.177.5

मंडल 1 → सूक्त 177 → श्लोक 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 177
ओ सुष्टु॑त इन्द्र याह्य॒र्वाङुप॒ ब्रह्मा॑णि मा॒न्यस्य॑ का॒रोः । वि॒द्याम॒ वस्तो॒रव॑सा गृ॒णन्तो॑ वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥ (५)
हे भली प्रकार स्तुत्य इंद्र! आदरणीय स्तोता के मंत्रों को स्वीकार करके हमारे सामने आओ. स्तुति करते हुए हम तुम्हारी रक्षा पाकर निवासस्थान के साथ ही अन्न, बल और दीर्घ आयु प्राप्त करेंगे. (५)
O you are well-acclaimed Indra! Come before us by accepting the mantras of the venerable hymn. In praise, we will receive your protection, as well as food, strength, and long life. (5)