ऋग्वेद (मंडल 1)
तं वां॒ रथं॑ व॒यम॒द्या हु॑वेम॒ स्तोमै॑रश्विना सुवि॒ताय॒ नव्य॑म् । अरि॑ष्टनेमिं॒ परि॒ द्यामि॑या॒नं वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥ (१०)
हे अश्चिनीकुमारो! हम स्तुतियों द्वारा तुम्हारे शीघ्रगति वाले, प्रशंसनीय, आकाश में उड़ने वाले तथा न टूटने योग्य नेमि वाले रथ को अपने यज्ञ में बुलाते हैं, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घ आयु प्राप्त कर सकें. (१०)
O aschinikumaro! We call to our yajna by the praises your fast-paced, praiseworthy, sky-flying, and unbreakable-like-headed chariot, so that we may gain food, strength, and long life. (10)