ऋग्वेद (मंडल 1)
यु॒वमत्य॒स्याव॑ नक्षथो॒ यद्विप॑त्मनो॒ नर्य॑स्य॒ प्रय॑ज्योः । स्वसा॒ यद्वां॑ विश्वगूर्ती॒ भरा॑ति॒ वाजा॒येट्टे॑ मधुपावि॒षे च॑ ॥ (२)
हे सबके द्वारा स्तुत्य एवं मधुपानकर्ता अश्विनीकुमारो! तुम्हारी बहिन उषा जिस समय तुम्हारे आने के लिए प्रभात करती है एवं यजमान अन्न और बल पाने के लिए तुम्हारी स्तुति करता है, उस समय तुम दोनों का नित्यगामी, विविध गतियों वाला, मनुष्यों का हितकारक एवं विशेष रूप से पूज्य रथ पहले ही चल देता है. (२)
O all praiseworthy and madhupanikar Ashwinikumaro! At the time when your sister Usha mornings you to come and the host praises you for getting food and strength, the eternal, diverse movements of both of you, the beneficial and especially the revered chariot of mankind already runs. (2)