हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.184.2

मंडल 1 → सूक्त 184 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 184
अ॒स्मे ऊ॒ षु वृ॑षणा मादयेथा॒मुत्प॒णीँर्ह॑तमू॒र्म्या मद॑न्ता । श्रु॒तं मे॒ अच्छो॑क्तिभिर्मती॒नामेष्टा॑ नरा॒ निचे॑तारा च॒ कर्णैः॑ ॥ (२)
हे कामवर्षक अश्विनीकुमारो! सोमरस से प्रसन्न होकर तुम हमें संतुष्ट करो एवं पणियों का समूल नाश करो. तुम मेरी उन स्तुतियों को सुनो जो तुम्हें अनुकूल करने एवं तृप्ति प्रदान करने के लिए की गई हैं. हे नेताओ! तुम स्तुतियों का अन्वेषण एवं संचय करते हो. (२)
O workman Ashwinikumaro! Be pleased with the Somras, please us and destroy the panies altogether. Listen to My praises that have been made to suit you and to give you satisfaction. Hey leaders! You explore and store praises. (2)