ऋग्वेद (मंडल 1)
त्वम॑ग्ने॒ प्रम॑ति॒स्त्वं पि॒तासि॑ न॒स्त्वं व॑य॒स्कृत्तव॑ जा॒मयो॑ व॒यम् । सं त्वा॒ रायः॑ श॒तिनः॒ सं स॑ह॒स्रिणः॑ सु॒वीरं॑ यन्ति व्रत॒पाम॑दाभ्य ॥ (१०)
हे अग्नि! तुम हम पर अनुग्रह बुद्धि रखते हो. तुम हमारे पालक हो. तुम हमें दीर्घ जीवन देते हो. हम तुम्हारे बंधु हैं. कोई तुम्हारी हिंसा नहीं कर सकता, क्योंकि तुम शोभन पुरुषों से युक्त एवं यज्ञ के पालन करनेवाले हो. तुम्हें सैकड़ों एवं हजारों प्रकार की संपत्तियां भली प्रकार प्राप्त हैं. (१०)
O agni! You keep grace wisdom on us. You are our guardian. You give us long life. We are your brothers. No one can do you any violence, for you are full of men and who follow the yagna. You have hundreds and thousands of properties well. (10)