ऋग्वेद (मंडल 1)
ए॒तेना॑ग्ने॒ ब्रह्म॑णा वावृधस्व॒ शक्ती॑ वा॒ यत्ते॑ चकृ॒मा वि॒दा वा॑ । उ॒त प्र णे॑ष्य॒भि वस्यो॑ अ॒स्मान्सं नः॑ सृज सुम॒त्या वाज॑वत्या ॥ (१८)
हे अग्नि! तुम हमारी इस स्तुति से वृद्धि प्राप्त करो. हमने अपनी शक्ति और बुद्धि के अनुसार तुम्हारी स्तुति की है. इस स्तुति के कारण तुम हमें प्रभूत संपत्ति दो तथा अन्न के साथ-साथ शोभन बुद्धि भी प्रदान करो. (१८)
O agni! You receive our growth from this praise. We have praised you according to our power and wisdom. Because of this praise, give us the rich riches and give us food as well as good wisdom. (18)