ऋग्वेद (मंडल 1)
त्वम॑ग्ने वृजि॒नव॑र्तनिं॒ नरं॒ सक्म॑न्पिपर्षि वि॒दथे॑ विचर्षणे । यः शूर॑साता॒ परि॑तक्म्ये॒ धने॑ द॒भ्रेभि॑श्चि॒त्समृ॑ता॒ हंसि॒ भूय॑सः ॥ (६)
हे विशिष्ट ज्ञानसंपन्न अग्नि! तुम सदाचारहीन मनुष्य को ऐसे काम में लगाते हो, जिससे उसका उद्धार हो सके. जब विस्तृत युद्ध चारों ओर भली-भांति आरंभ हो जाता है तो तुम्हारी कृपा से थोड़ी संख्या वाले एवं वीरताशून्य लोग बड़े-बड़े वीरों का वध कर डालते हैं. (६)
O uniquely enlightened agni! You engage a virtuous man in such a way that he can be saved. When the wide war starts all around, by your grace, a small number of and heroic people kill great heroes. (6)