हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.32.4

मंडल 1 → सूक्त 32 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 32
यदि॒न्द्राह॑न्प्रथम॒जामही॑ना॒मान्मा॒यिना॒ममि॑नाः॒ प्रोत मा॒याः । आत्सूर्यं॑ ज॒नय॒न्द्यामु॒षासं॑ ता॒दीत्ना॒ शत्रुं॒ न किला॑ विवित्से ॥ (४)
हे इंद्र! जब तुमने प्रथम उत्पन्न मेघ का वध किया था, तभी मायाधारियों की माया भी समाप्त कर दी थी. इसके पश्चात्‌ तुमने सूर्य, आकाश एवं उषा को प्रकाशित किया था. इसके बाद तुम्हारा कोई शत्रु दिखाई नहीं दिया. (४)
O Indra! When you killed the first born cloud, the maya of the Mayandharis also came to an end. After that you illuminated the sun, the sky and the usha. After that, no enemies of yours were seen. (4)