हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.35.2

मंडल 1 → सूक्त 35 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 35
आ कृ॒ष्णेन॒ रज॑सा॒ वर्त॑मानो निवे॒शय॑न्न॒मृतं॒ मर्त्यं॑ च । हि॒र॒ण्यये॑न सवि॒ता रथे॒ना दे॒वो या॑ति॒ भुव॑नानि॒ पश्य॑न् ॥ (२)
सविता का रथ सोने का है. वे अंधकार से भरे आकाश में बार-बार भ्रमण करते हुए देवों और मानवों को अपने-अपने कमों में लगाते हुए सभी लोकों की यात्रा करते हैं. (२)
Savita's chariot is of gold. They travel to all the realms, visiting all the realms, putting the gods and human beings in their respective commas, repeatedly roaming through the darkness-filled sky. (2)