ऋग्वेद (मंडल 1)
मरु॑तो वीळुपा॒णिभि॑श्चि॒त्रा रोध॑स्वती॒रनु॑ । या॒तेमखि॑द्रयामभिः ॥ (११)
हे मरुदगणो! जिस प्रकार विचित्र किनारों वाली नदी बहती है, उसी प्रकार तुम अपने शक्तिशाली हाथों की सहायता से बिना रुके हुए चलते रहो. (११)
O the deserters! Just as a river with strange banks flows, so with the help of your powerful hands, keep walking without stopping. (11)