हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.61.4

मंडल 1 → सूक्त 61 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 61
अ॒स्मा इदु॒ स्तोमं॒ सं हि॑नोमि॒ रथं॒ न तष्टे॑व॒ तत्सि॑नाय । गिर॑श्च॒ गिर्वा॑हसे सुवृ॒क्तीन्द्रा॑य विश्वमि॒न्वं मेधि॑राय ॥ (४)
जिस प्रकार रथ बनाने वाला रथ के अधिपति के पास रथ ले जाता है, उसी प्रकार मैं भी स्तुति योग्य इंद्र को लक्षित करके प्रशंसावचन प्रेषित करता हूं एवं बुद्धिसंपन्न इंद्र के लिए विश्वव्यापक हव्य का विसर्जन करता हूं. (४)
Just as the chariot maker takes the chariot to the owner of the chariot, so I also send the praise word targeting the worthy Indra and immerse the world-wide havya for the wise Indra. (4)