ऋग्वेद (मंडल 1)
इ॒मं य॒ज्ञमि॒दं वचो॑ जुजुषा॒ण उ॒पाग॑हि । सोम॒ त्वं नो॑ वृ॒धे भ॑व ॥ (१०)
हे सोम! हमारे इस यज्ञ और स्तुतिवचन को स्वीकार करके हमारे समीप आओ और हमारे यज्ञ की वृद्धि करो. (१०)
Hey Mon! Accept this yajna and the praise of ours and come near to us and increase our yajna. (10)