ऋग्वेद (मंडल 1)
राज्ञो॒ नु ते॒ वरु॑णस्य व्र॒तानि॑ बृ॒हद्ग॑भी॒रं तव॑ सोम॒ धाम॑ । शुचि॒ष्ट्वम॑सि प्रि॒यो न मि॒त्रो द॒क्षाय्यो॑ अर्य॒मेवा॑सि सोम ॥ (३)
हे सोम! ब्राह्मणों के राजा वरुण से संबंधित यज्ञ तुम्हारे ही हैं, इसलिए तुम्हारा तेज विस्तृत एवं गंभीर है. तुम वरुण के समान सबके सुधारकर्ता एवं अर्यमा के समान वृद्धि करने वाले हो. (३)
Hey Mon! The yajna related to Varuna, the king of the Brahmins, belongs to you, so your brightness is wide and serious. You are the reformer of all like Varun and the one who grows like Aryama. (3)