हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.94.11

मंडल 1 → सूक्त 94 → श्लोक 11 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 94
अध॑ स्व॒नादु॒त बि॑भ्युः पत॒त्रिणो॑ द्र॒प्सा यत्ते॑ यव॒सादो॒ व्यस्थि॑रन् । सु॒गं तत्ते॑ ताव॒केभ्यो॒ रथे॒भ्योऽग्ने॑ स॒ख्ये मा रि॑षामा व॒यं तव॑ ॥ (११)
हे अग्नि! वन प्रदेश को जलाने वाला तुम्हारा शब्द सुनकर पक्षी डर जाते हैं. जब तुम्हारी ज्वालाएं वन में वर्तमान तिनकों को भक्षण करके सभी ओर फैलती हैं, तब तुम्हारे लिए एवं तुम्हारे रथ के लिए समस्त अरण्य सुगम बन जाता है. तुम्हारी मित्रता प्राप्त करके हम किसी के द्वारा हिंसित न हों. (११)
O agni! The birds get scared when they hear your words that burn the forest region. When your flames spread all over the forest by devouring the present straws, the whole wilderness becomes easier for you and for your chariot. Let us not be disenchanted by anyone by gaining your friendship. (11)