हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.100.4

मंडल 10 → सूक्त 100 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 100
इन्द्रो॑ अ॒स्मे सु॒मना॑ अस्तु वि॒श्वहा॒ राजा॒ सोमः॑ सुवि॒तस्याध्ये॑तु नः । यथा॑यथा मि॒त्रधि॑तानि संद॒धुरा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥ (४)
इंद्र हमारे प्रति अनुग्रहपूर्ण चित्त वाले बनें. सब दिनों में दीप्तिशाली सोम हमारे स्तोत्र को प्राप्त करें. इंद्र ऐसी कृपा करें कि हम मित्रों में निहित धन पा सकें. मैं सबकी रक्षा करने वाली देवमाता अदिति का वरण करता हूं. (४)
May Indra be kind to us. Get our hymn on all days the radiant Som. May Indra bless us so that we can get the wealth contained in friends. I choose Devmata Aditi, who protects everyone. (4)