हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.100.6

मंडल 10 → सूक्त 100 → श्लोक 6 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 100
इन्द्र॑स्य॒ नु सुकृ॑तं॒ दैव्यं॒ सहो॒ऽग्निर्गृ॒हे ज॑रि॒ता मेधि॑रः क॒विः । य॒ज्ञश्च॑ भूद्वि॒दथे॒ चारु॒रन्त॑म॒ आ स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥ (६)
देवों का बल इंद्र भली प्रकार संपादित करके एवं हमारी यज्ञशाला में वर्तमान है. अग्नि देवों को बुलाने वाले बुद्धिमान्‌, विद्वान्‌ व यज्ञ के पात्र एवं यज्ञ में हमारे सेव्य हैं. (६)
The force of the gods is present in Indra's yagyashala by editing well. The wise, learned and yajna characters who call the agni gods and our sevayas in yajna. (6)