ऋग्वेद (मंडल 10)
बृ॒हन्ते॑व ग॒म्भरे॑षु प्रति॒ष्ठां पादे॑व गा॒धं तर॑ते विदाथः । कर्णे॑व॒ शासु॒रनु॒ हि स्मरा॒थोंऽशे॑व नो भजतं चि॒त्रमप्नः॑ ॥ (९)
हे अश्चिनीकुमारो! जिस प्रकार लंबे पैर गहरे जल को पार करने में सहायता देते हैं, उसी प्रकार तुम विपत्ति से पार होने में मुझे सहारा दो. तुम कानों के समान स्तोता की स्तुति सुनते हो एवं यज्ञ के भागों के समान सुंदर यज्ञ में सम्मिलित होते हो. (९)
O aschinikumaro! Just as long legs help me to cross deep water, so support me in overcoming adversity. You hear the praise of the hymn like ears and you join the beautiful yajna as the parts of the yajna. (9)