ऋग्वेद (मंडल 10)
मनी॑षिणः॒ प्र भ॑रध्वं मनी॒षां यथा॑यथा म॒तयः॒ सन्ति॑ नृ॒णाम् । इन्द्रं॑ स॒त्यैरेर॑यामा कृ॒तेभिः॒ स हि वी॒रो गि॑र्वण॒स्युर्विदा॑नः ॥ (१)
हे स्तोताओ! ज्यों-ज्यों तुम्हारी बुद्धि का उदय हो, वैसे-वैसे ही तुम स्तुतियां पढ़ो. सत्यकर्मो के अनुष्ठान द्वारा हम इंद्र को बुलाते हैं. वीर इंद्र स्तुतियों को जानकर स्तोताओं को प्यार करते हैं. (१)
This stotao! As your wisdom rises, so do you read the praises. By the ritual of Satyakarmo we call upon Indra. Veer Indra loves the hymns by knowing the praises. (1)