हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.145.4

मंडल 10 → सूक्त 145 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 145
न॒ह्य॑स्या॒ नाम॑ गृ॒भ्णामि॒ नो अ॒स्मिन्र॑मते॒ जने॑ । परा॑मे॒व प॑रा॒वतं॑ स॒पत्नीं॑ गमयामसि ॥ (४)
मैं अपनी सौत का नाम तक नहीं लेती. सौत को कोई भी पंसद नहीं करता. मैं अपनी सौत को बहुत दूर स्थान पर भेजती हूं. (४)
I don't even take the name of my son. No one likes Saut. I send my son-in-law to a very far away place. (4)