हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.148.2

मंडल 10 → सूक्त 148 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 148
ऋ॒ष्वस्त्वमि॑न्द्र शूर जा॒तो दासी॒र्विशः॒ सूर्ये॑ण सह्याः । गुहा॑ हि॒तं गुह्यं॑ गू॒ळ्हम॒प्सु बि॑भृ॒मसि॑ प्र॒स्रव॑णे॒ न सोम॑म् ॥ (२)
हे शूर एवं दर्शनीय इंद्र! तुम जन्म लेते ही सूर्य की सहायता से दास जाति के लोगों को हराते हो. तुम गुहा में छिपे एवं जल में डूबे हुए को भी हरा देते हो. वर्षा होने पर हम सोमरस प्रस्तुत करेंगे. (२)
O brave and visible Indra! As soon as you are born, you defeat the people of the dasa jati with the help of the sun. You also defeat the hidden in the cavity and immersed in the water. We will present somras when it rains. (2)